गोला प्रखंड के बाबलोंग गांव में ईंधन के रूप में ग्रामीण कर रहे हैं गोबर गैस का उपयोग
आर्थिक बचत के साथ सुरक्षा की दृष्टि से पूर्ण रूप से सटीक
पर्यावरण संरक्षण को लेकर किया जा रहा इस तरह के कार्य
चार हजार परिवारों को मिलेगा इसका लाभ
रांची के सिद्धा सोशल इनीसिएटीव थ्रू डेवलपमेंट एंड ह्यूमनटेरियन एक्शन संस्था के द्वारा कराया गया है निर्माण
मनोज कुमार झा
गोला।प्रखंड क्षेत्र से महज 12 किलो मीटर की दूरी पर स्थित संग्रामपुर पंचायत के बाबलोंग गांव में रांची के सिद्धा सोशल इनीसिएटीव थ्रू डेवलपमेंट एंड ह्यूमनटेरियन एक्शन संस्था के द्वारा सन 2019- 20 में करीब 150 घरों में गोबर गैस द्वारा खाना बनाने के लिए टैंक का निर्माण कराया गया है।इसका उपयोग खाना बनाने के लिए किया जा रहा है।उसके लिए अलग चूल्हे का इस्तेमाल किया जाता है,जिससे उन्नत चूल्हा के नाम से जानते हैं।
प्रयोग में यह अन्य गैस सिलेंडर की तुलना में अच्छा है और उनकी ज्वलनशील भी अच्छी है,लिहाजा विशेष चूल्हे से गोबर गैस के माध्यम से खाना बनाया जाता है।इसके इस्तेमाल से बने भोजन में किसी भी तरह की दुर्गंध या स्वाद में परिवर्तन नहीं होता है।निर्माणकर्ता संस्था की कोशिश की जितनी तारीफ की जाए वो कम है।इस संस्था द्वारा सर्वप्रथम नाबार्ड और वनविभाग के साथ मिलकर एक प्रोग्राम कराया गया था,जिसके बाद 2018-19 में जलछाजन का काम किया गया,जो 2023 तक चला,जिसके तहत गांव में छोटे-छोटे कई तालाब का निर्माण किया गया,जिसमें ग्रामीणों को आजीविका के लिए मछली के बीज छोड़े गए और बतख भी दिए गए। इसके अलावा पंचायत अंतर्गत 7 हेक्टेयर जमीन पर आम बागवानी के लिए आम के पेड़ लगाए गए।लोगों के बीच 10- 10 मुर्गी शेड का निर्माण कराया गया।महंगे गैस के मार से बचाने के लिए यह एक सफल प्रयास साबित हो रहा है।
लाभार्थी महिलाओं में गांव के अंजू देवी और वैशाखी देवी का कहना है कि इससे सिलेंडर के खर्च की बचत होती है।साथ ही चूल्हे पर खाना बनाने से धुएं और राख से आंखों में जलन होती थी जो अब नहीं हो रही है।इस प्लांट से मिल रहे फायदे को देखते हुए गांव में छोटे-छोटे कई निजी गोबर गैस प्लांट लगाए गए हैं,जिससे गांव के लोग अब उसी से खाना बना रहे हैं।
इस गैस को पाइप के माध्यम से चूल्हे तक लाया जाता है फिर गैस जलाकर भोजन बनाने में उपयोग किया जाता है। टैंक से बाहर निकलने वाली भुरभुरा गोबर अवशेष को हम उर्वरक खाद के रूप में उपयोग कर सकते हैं। यह खाद मिट्टी की उपज क्षमता को बढ़ा देती है। पूरी तरह से प्राकृतिक होने की वजह से इस खाद से पर्यावरण को भी किसी तरह का नुकसान नहीं होता है। इस पोषणकारी तत्व से मुफ़्त का प्राकृतिक खाद भी मिल जाता है।
गैस का निर्माण करने के लिए सबसे पहले घर पर गोबर गैस का प्लांट बनाना पड़ता है। गोबर गैस प्लांट एक ऐसा प्लांट है,जिसके माध्य्म से हमें भोजन पकाने के लिए ईंधन,खेतों के लिए जैविक खाद प्राप्त की जा सकती है।यह ग्रामीण क्षेत्रों के लिए बहुत उपयुक्त है।इससे हमें और हमारे पर्यावरण को किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं होता। यह हमारे लिए अत्यंत ही लाभदायक है।
गोबर से गैस बनने की पूरी प्रक्रिया के बारे में बताया गोबर डालने से पहले गोबर टैंक का प्रवेश पाइप बन्द करना पड़ता है। फिर गोबर को टैंक में डाल कर आवश्यकतानुसार पानी डालकर टैंक में उपस्थित गोबर को 2-3 मिनट घोलना पड़ता है। तीन-चार घंटे बाद टैंक के प्रवेश पाइप को खोलकर गोबर को अंदर प्रवेश कराना पड़ता है।सबसे पहले घर पर गोबर गैस का प्लांट बनाना पड़ता है। गोबर गैस प्लांट एक ऐसा प्लांट है जिसके माध्य्म से हमें भोजन पकाने के लिए ईंधन, खेतों के लिए जैविक खाद प्राप्त की जा सकती है।इससे ग्रामीणों को खाना बनाने के लिए लकड़ी की जरूरत समाप्त हो गयी।वहीं गोबर गैस से निकलने वाली स्लरी का उपयोग किचन गार्डेन में होने लगा।इससे खेत में रसायनिक खाद की जरूरत समाप्त हो गयी।सब्जी खाने से शारीरिक क्षमता भी बढ़ी।
यहां के ग्रामीणों को कड़कनाथ का चूजा दिया गया।शर्त थी कि मुर्गी या मुर्गा नहीं केवल अंडा खा सकते हैं। इससे यहां रहने वाले लोगों का पोषण की कमी दूर होने लगी।धीरे-धीरे यहां के लोगों ने खुद से भी कई जानवर खरीदे और सरकार के द्वारा पशुपालन विभाग से मिलकर जानवर खरीदने की जानकारियां दी गई।इससे गांव में जलावन से होने वाला प्रदूषण समाप्त हो रहा है। वहीं खाना बनाने के लिए ग्रामीणों को इंप्रुव्य कुकड स्टोव भी दिये गये। गांव में इस तरह से एलपीजी की खपत भी बहुत कम हो गय। साथ ही संस्था के द्वारा अमृत जल बनाने की जानकारी दी जा रही है जिसका छिड़काव खेती बाड़ी में उपयोग में ला सकते हैं।
औराडीह गांव में बीज बैंक का निर्माण संस्था द्वारा किया जाएगा।गोबर गैस द्वारा खाना बनाने के लिए गांव के लोगों को चूल्हे के लिए राशि दी जा रही है,जिसका भुगतान पीडब्लूसी ऑर्गेनाइजेशन द्वारा राशि का भुगतान किया जा रहा है।
इस मौके पर संस्था के सचिव हेमंत व कार्यक्रम प्रमुख मनीष के अलावा गांव के रूपलाल मांझी, तीर्थनाथ मांझी, जयनंदन मांझी, जगेश्वर मांझी आदि कई लोग मौजूद थे।