महाकुंभ 2025 विशेष:महाकुंभ में इस बार विश्व को चौंकाने जा रहा देश का इकलौता बिना मूर्ति वाला अलोपशंकरी मंदिर

महाकुंभ 2025 विशेष:महाकुंभ में इस बार विश्व को चौंकाने जा रहा देश का इकलौता बिना मूर्ति वाला अलोपशंकरी मंदिर

31 Oct 2024 |  9

महाकुंभ 2025 विशेष:महाकुंभ में इस बार विश्व को चौंकाने जा रहा देश का इकलौता बिना मूर्ति वाला अलोपशंकरी मंदिर

 

अलोप शंकरी मंदिर दुनिया का एकमात्र ऐसा शक्तिपीठ है, जहां माता की कोई मूर्ति नहीं है।

 

विजय शर्मा

 

प्रयागराज। उत्तर प्रदेश के प्रयागराज का आदिकालीन अलोपशंकरी का सिद्धपीठ श्रद्धा एवं आकर्षण का प्रमुख केंद्र रहा है। इस महाकुंभ में यह सिद्धपीठ भी आस्था के प्रमुख केंद्रों में एक होगा। अलोप शंकरी मंदिर दुनिया का एकमात्र ऐसा शक्तिपीठ है, जहां माता की कोई मूर्ति नहीं है। इसीलिए इसके पुनर्निर्माण के लिए सरकार की ओर से 7 करोड़ रुपए खर्च किए जा रहे हैं। वर्तमान में करीब 55 फ़ीसदी से अधिक निर्माण कार्य पूरे हो चुके हैं आशा है 15 दिसंबर तक इस कार्य को पूरा कर लिया जाएगा। धार्मिक स्थलों के पुनर्निर्माण का कार्य चौबीसों घंटे अनवरत चल रहा है।

 

सनातन धर्म में ईश्वर के साकार रूप की पूजा का प्रावधान है और भक्त ईश्वर की प्रतिमा या मूर्ति की आराधना करते हैं,लेकिन प्रयागराज के अलोपी देवी मंदिर की बात करें तो यहां मंदिर में बिना मूर्ति के रोज हजारों भक्त देवी की आराधना करते हैं।ये विचित्र लगता है किंतु सत्य है।अलोपी देवी मंदिर लाखों भक्तों की आस्था का केंद्र बना हुआ है और दूर-दूर से सभी धर्मों के लोग यहां मनोकामना मांगने आते हैं।कहा जाता है कि बच्चों की कई बीमारियां जब डाक्टर भी नहीं ठीक कर पाते तब लोग इस मंदिर में आते हैं। मंदिर के कुंड के पानी से ही बीमारियां ठीक हो जाती हैं। इस मंदिर को देवी के 51 शक्तिपीठों में से एक की मान्यता प्राप्त है।कहा जाता है कि देवी सती के दाहिने हाथ का पंजा इस स्थान पर कटकर गिरा था और यहां एक कुंड में जाकर विलुप्त हो गया था।मंदिर में देवी की मूर्ति की बजाय लकड़ी के पालने यानी डोली की पूजा होती है जो कि करीब दस फीट चौड़े झूले पर लटका हुआ है। झूला लकड़ी का है,लेकिन लड़की को संरक्षित करने के लिए इसे चांदी से मढ़ दिया गया है। इसी झूले को देवी का प्रतीक कहा जाता है।भक्त यहां मनोकामना मांगते समय हाथ पर रक्षा सूत्र बांधते हैं, जिसके बारे में कहा जाता है कि जब तक रक्षा सूत्र बंधा रहेगा, मां उस भक्त की सुरक्षा करती रहेंगी।

 

 पौराणिक मान्यता के अनुसार जब देवी सती अपने पिता दक्ष के घर बिना बुलाए यज्ञ में पहुंच गई तो वहां उनका और उनके पति महादेव का अपमान हुआ।इससे निराश होकर देवी सती यज्ञ की अग्नि में कूद गई और उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए। शिव ने क्रोधित होकर देवी सती के मृत शरीर को हाथों में लेकर तांडव करना आरंभ कर दिया।तांडव से दुनिया नष्ट ना हो जाए, इस वजह से भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र चलाकर सती के शरीर के टुकड़े कर दिए।देवी के शरीर के अंग जहां,जहां गिरे वहां शक्तिपीठ स्थापित हुए।प्रयागराज के इस स्थान पर देवी सती के हाथ का पंजा कटकर गिरा,लेकिन यहां एक कुंड में गिरते ही लुप्त हो गया यानी की गायब हो गया था।तबसे इस मंदिर का नाम अलोप शंकरी रखा गया।अलोप का अर्थ गायब और शंकरी मां पार्वती को ही कहा जाता है। प्रयागराज नाम का रामचरित मानस में भी उल्लेख है। 15वीं सदी में मुगल सल्तनत के दौरान प्रयागराज का नाम बदल कर इलाहाबाद कर दिया गया था और अब उत्तर प्रदेश सरकार ने इसका नाम फिर से प्रयागराज कर दिया।प्रयाग का अर्थ है नदियों का संगम।यानी जहां नदियों का संगम होता हो वो स्थान प्रयागराज कहलाता है।इस मंदिर को 51 शक्तिपीठों में से एक कहा जाता है।

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