प्रयागराज।दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक आयोजन महाकुंभ में आज बसंत पंचमी के दिन तीसरे अमृत स्नान है।संगम में अमृत स्नान के लिए आस्था का सैलाब उमड़ पड़ा है।करोड़ों श्रद्धालुओं ने अमृत स्नान कर पुण्य की प्राप्ति की।सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं और यातायात पूरी तरह सुचारु है।बता दें कि करोड़ों श्रद्धालु देर रात से ही पुण्य की कामना के साथ संगम की रेती पर जुटने लगे।हर-हर गंगे,बम बम भोले और जय श्री राम के गगनभेदी उद्घोष से पूरा मेला क्षेत्र गूंज उठा।
सुबह 3 बजे से अखाड़ों का तीसरा और अंतिम अमृत स्नान शुरू हुआ।इस बीच नागा साधु करतब करते हुए दिखे। प्रशासन ने हेलीकॉप्टर से महाकुंभ में आए श्रद्धालुओं पर पुष्प वर्षा करवाई।साधु-संत,महामंडलेश्वर और देश-विदेश से आए श्रद्धालु संगम में स्नान करते नजर आए।मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर अमृत स्नान के लिए अद्भुत और दिव्य महाकुंभ की सभी व्यवस्थाएं सुनिश्चित की गई।सीएम के विशेष निर्देश पर सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम हैं।महाकुंभ मेला क्षेत्र में डीआईजी और एसएसपी खुद मैदान में उतरकर व्यवस्थाओं की निगरानी कर रहे हैं।श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की असुविधा का सामना नहीं करना पड़ रहा है।अब तक 1 करोड़ 25 लाख श्रद्धालु संगम में स्नान कर चुके हैं।
अमृत स्नान के दौरान महाकुंभ का डिजिटल स्वरूप भी आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। हर श्रद्धालु इस दिव्य अनुभूति को अपने कैमरे में सुरक्षित करने के लिए उत्साहित नजर आ रहा है।संगम तट पर फूल-मालाओं से लदे संतों पर उत्साहित श्रद्धालुओं ने पुष्प वर्षा कर उनका स्वागत किया,जिससे पूरे महाकुंभ का माहौल और भव्य बन गया।
महाकुंभ के अंतिम अमृत स्नान के दौरान नागा साधुओं का अद्भुत प्रदर्शन श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र बना।संगम तट पर इन साधुओं की पारंपरिक और अद्वितीय गतिविधियों ने श्रद्धालुओं का ध्यान अपनी ओर खींचा। अमृत स्नान के लिए ज्यादातर अखाड़ों का नेतृत्व कर रहे इन नागा साधुओं का अनुशासन और उनका पारंपरिक शस्त्र कौशल देखने लायक था। कभी डमरू बजाते हुए तो कभी भाले और तलवारें लहराते हुए इन साधुओं ने युद्ध कला का अद्भुत प्रदर्शन किया। लाठियां भांजते और अठखेलियां करते हुए ये साधु अपनी परंपरा और जोश का प्रदर्शन कर रहे थे।
अमृत स्नान के लिए निकली अखाड़ों की शोभा यात्रा में कुछ नागा साधु घोड़ों पर सवार थे तो कुछ पैदल चलते हुए अपनी विशिष्ट वेशभूषा और आभूषणों से सजे हुए थे। जटाओं में फूल, फूलों की मालाएं और त्रिशूल हवा में लहराते हुए उन्होंने महाकुंभ की पवित्रता को और भी बढ़ा दिया।अनुशासन में रहने वाले इन साधुओं को कोई रोक नहीं सकता था,लेकिन वो अपने अखाड़ों के शीर्ष पदाधिकारियों के आदेशों का पालन करते हुए आगे बढ़े।नगाड़ों की गूंज के बीच उनके जोश ने इस अमृत स्नान को और भी खास बना दिया। त्रिशूल और डमरू के साथ उनके प्रदर्शन ने यह संदेश दिया कि महाकुम्भ केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि प्रकृति और मनुष्य के मिलन का उत्सव है।