लखनऊ।जून का महीना आते ही लोगों को दो चीजों की याद सबसे ज्यादा आती है,एक तो बेहाल करने वाली गर्मी से बचाने के लिए बारिश की और दूसरा 2 जून की रोटी की।आपने अक्सर लोगों से दो जून की रोटी के बारे में सुना होगा,कोई मजाक में कहता है तो कोई सीरियस होकर कहता है। 2 जून की रोटी नसीब वालों को मिलती है,ये कहावत हर किसी ने सुनी ही होती है,लेकिन कभी सोचा है कि आखिर इस दो जून की रोटी का क्या मतलब होता और क्यों जून आते ही इस तारीख को लेकर चर्चा की होती है,इसके असली मतलब और इसके पीछे छिपे गहरे सामाजिक संदेश हैं।
बहुत से लोग सोचते हैं कि 2 जून की रोटी का मतलब है साल की दूसरी जून तारीख को मिलने वाला खाना,लेकिन इसका सीधा मतलब ये नहीं होता है।दरअसल दो जून की रोटी ये एक बहुत पुरानी कहावत है,जिसका संबंध अवधी भाषा से होता है, जो उत्तर प्रदेश के अवध क्षेत्र और आसपास में बोली जाती है।असल में अवधी में जून का मतलब होता है वक्त या समय से,तो दो जून की रोटी मतलब: दो वक्त का खाना,यानी सुबह और शाम का भोजन।जब किसी को दोनों वक्त का खाना नसीब हो जाए तो उसे दो जून की रोटी खाना कहते हैं और जिसे नहीं मिलता उसके लिए कहा जाता है कि दो जून की रोटी तक नहीं नसीब हो रही है।वाकई ये रोटी सिर्फ किस्मत वालों को मिलती है और अगर आप उनमें से एक हैं तो आपको परमात्मा का शुक्रगुजार होना चाहिए।
बता दें कि अहम कहावत यूं ही नहीं बन गई है।हमारे देश में पुराने समय में जब गरीबी और संसाधनों की कमी हुआ करती थी तो अनगितन लोगों के लिए दो वक्त का खाना जुटाना भी एक बड़ी चुनौती हुआ करता था।देश में ना जाने कितने लोग खुद के लिए 2 जून की रोटी नहीं कमा पाते थे,हमारे बुजुर्ग इस कहावत से बताने की कोशिश करते थे कि जीवन कितना कठिन है और दो समय का भोजन मिलना भी कितना मुश्किल होता है।वहीं यह कहावत तब प्रचलन में और आई जब मुंशी प्रेमचंद और जयशंकर प्रसाद जैसे बड़े साहित्यकारों ने रचनाओं में इसका इस्तेमाल किया।
जून का महीना वैसे ही भयंकर गर्मी का होता है, जब गरीब मजदूरों के लिए काम करना बेहद मुश्किल हो जाता है,दोपहर के समय कर्फ्यू जैसा सन्नाटा होता है,लिहाजा वक्त काम धंधा ठप सा रहता है,रेहड़ी पटरी दुकानदारों या फेरी लगाने वालों के लिए भी दो जून की रोटी के बराबर पैसा जुटाना मुश्किल रहता है।कई लोगों का मानना है कि ये कहावत आज की नहीं, बल्कि 600 सालों से चली आ रही है।
महंगाई के दौर में अमीर तो भर पेट खाना खा लेते हैं,पर गरीबों के लिए दो जून की रोटी भी नहीं नसीब है।आपने इस तरह के वाक्य अक्सर कहानियों या खबरों में पढ़े होंगे,इसमें भी जून महीने से नहीं, बल्कि दो वक्त के खाने से ही मतलब है।अब भी भारत में ना जानें कितने ही ऐसे लोग हैं,जिनको दो जून की रोटी आसानी से नहीं मिल पाती है,तो अब आप समझ गए होंगे 2 जून की रोटी सिर्फ केवल तारीख या एक मज़ेदार कहावत नहीं है, बल्कि यह हमारी भाषा, हमारी संस्कृति और हमारे समाज के इतिहास का एक अहम हिस्सा भी है,ये तारीख बताती है कि रोटी की वैल्यू क्या है,तो अब अगली बार जब आप 2 जून की रोटी खाएं, तो इसके गहरे अर्थ को भी जरूर याद कीजिए।