प्रयागराज।संगम नगरी में विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन महाकुंभ 13 जनवरी से शुरू है।महाकुम्भ में अखाड़ों के साधु संत पहुंचे हैं।तमाम नागा साधु,साधु-संत साधना कर रहे हैं। महाकुम्भ में देश और विश्वभर से श्रद्धालु महाकुंभ में पहुंच रहे हैं।किन्नर अखाड़े में भारी संख्या में श्रद्धालु आशीर्वाद लेने पहुंच रहे हैं।किन्नर समुदाय के लिए 10 साल पहले अखाड़ा पंजीकृत कराने के दौरान कड़े विरोध का सामना करना पड़ा था,लेकिन किन्नरों का आशीर्वाद लेने पहुंच रही श्रद्धालुओं की भीड़ ने उम्मीद जगाई है कि आखिरकार समाज उन्हें स्वीकार करेगा।
किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर ने क्या कहा
खुद की पहचान महिला के रूप में करने वालीं किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर पवित्रा नंदन गिरि ने कहा कि समाज ने हमेशा किन्नरों का तिरस्कार किया है,हमें हमेशा से हीन भावना से देखा जाता रहा है। जब हमने अपने लिए अखाड़ा पंजीकृत कराना चाहा तो हमारे धर्म को लेकर सवाल उठाए गए थे। हमसे ये पूछा गया कि हमें इसकी आखिर क्या जरूरत है। तमाम विरोधों के बावजूद हमने 10 साल पहले अखाड़े को रजिस्टर कराया और हमारा यह पहला महाकुंभ है।गिरि ने कहा कि अखाड़े ऐसी संस्थाएं हैं जो विशिष्ट आध्यात्मिक परंपराओं और प्रथाओं के तहत संतों को एक साथ लाती है। आज हम भी संगम में डुबकी लगा सकते हैं,अन्य अखाड़ों की तरह शोभा यात्रा निकाल सकते हैं और अनुष्ठान कर सकते हैं। अखाड़े में भारी संख्या में श्रद्धालु पहुंच रहे हैं और हमारा आशीर्वाद ले रहे हैं।
भेदभाव पर क्या बोलीं किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर
नर्सिंग में स्नातक तक की पढ़ाई कर चुकीं गिरी ने कहा कि उम्मीद है कि समाज में हमें भी स्वीकार किया जाएगा।गिरी ने कहा कि कई ट्रांसजेंडर लोगों के साथ होता है, उसी तरह उनके परिवार ने भी उन्हें छोड़ दिया।गिरी ने कहा कि हमारे लिए जीवन कठिन है। बचपन में मैं अपने भाई-बहनों के साथ खेलती थी। इस बात से अनजान कि मैं उनमें से नहीं हूं। एक बार जब मुझे पता चला तो सभी ने मेरे साथ ऐसा व्यवहार किया जैसे मैं हीन या अछूत हूं। मैंने अपनी शिक्षा भी पूरी की, लेकिन फिर भी भेदभाव का दंश झेलना पड़ा।
बता दें कि किन्नर अखाड़े में इस बार तीन हजार से अधिक किन्नर इस समय रह रहे हैं और संगम में आस्था की डुबकी लगा रहे हैं। इनमें अधिकांश ऐसे हैं जिनके परिवार वालों ने उनका साथ छोड़ दिया था।अखिल भारतीय किन्नर अखाड़ा महाकुंभ में 14वां अखाड़ा है।महाकुंभ में 13 अखाड़ों को तीन समूहों में विभाजित किया गया है,जिसमें सन्यासी (शैव), बैरागी (वैष्णव) और उदासीन है।