अयोध्या।भव्य राम मंदिर में रामलला की प्रतिष्ठा का आज बुधवार को एक साल पूरा गया।यह एक साल राम मंदिर के साथ अयोध्या को भव्यता के शिखर पर ले जाने वाला रहा।इसका आरंभ पांच अगस्त 2020 को हुआ था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन किया था।इस दिन राम मंदिर के ही लिए भूमि पूजन हुआ था, लेकिन इसी के साथ अघोषित तौर पर अयोध्या को श्रेष्ठतम सांस्कृतिक नगरी का स्वरूप दिए जाने का भी अभियान का शुभारंभ हो गया था।राम मंदिर के साथ अयोध्या का विकास तेजी से हो रहा है।
भूमि पूजन के बाद के चार वर्षों की यात्रा में यदि इस उन्नयन का आधारभूत ढांचा और भवन तैयार हुआ तो रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद से राम मंदिर के साथ अयोध्या शिखर का स्पर्श कर रही है।राम मंदिर का निर्माण लगभग पूरा हो चुका है,जिसमें 360 फीट लंबा और 250 फीट चौड़ा राम मंदिर बनाया गया है। इसके साथ ही अयोध्या की सड़कें और गली-कूचे भी आधुनिक और प्रशस्त हो रहे हैं।सामान्य सड़कें और गली-कूचों की पुरातन-पारंपरिक अयोध्या प्रशस्त मार्गों और नगर नियोजन के आधुनिकतम प्रबंधों से उच्चीकृत हो उठी है। हजारों मठ-मंदिरों के साथ प्रचुर होटल भी अयोध्या की शोभा बढ़ा रहे हैं।
अयोध्या धार्मिक पर्यटन के शिखर की ओर अग्रसर है।यह संभावना अभी से परिलक्षित होने लगी है। राम मंदिर अपनी परिकल्पना के अनुरूप भव्यता का पर्याय बनता जा रहा है। 360 फीट लंबे और 250 फीट चौड़े राम मंदिर का भूतल बीते साल ही निर्मित हो चुका है।इसमें रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के साथ आस्था का नित्य प्रतिमान गढ़ा जा रहा है,जबकि तीन तल, 392 स्तंभों,पांच उप शिखर और 161 फीट ऊंचे मुख्य शिखर से युक्त राम मंदिर का निर्माण अंतिम चरण में है।यह मात्र भव्य, सुदृढ़ और आकर्षक आकार में संयोजित शिलाओं का भव्य ढांचा ही नहीं है, बल्कि पराभूत अतीत का कलंक मिटाकर उस पर लिखी जा रही अस्मिता और कोटि-कोटि राम भक्तों की आस्था से जुड़ी असीम संभावना भी है।
यह संभावना रामपथ से भी प्रशस्त होती है।रामपथ से न केवल अयोध्या का मुख्य आंतरिक मार्ग दो से तीन गुणा तक चौड़ा और यातायात के आधुनिकतम मानकों से सज्जित हुआ है, बल्कि रामजन्मभूमि, सरयू और कई अन्य प्रमुख स्थलों और मंदिरों के उत्कर्ष का परिचायक है।रामपथ का एक सिरा अयोध्या की जिस सीमा से शुरू होता है वहां लता मंगेशकर चौक है।यह स्वर साम्राज्ञी की स्मृति जीवंत करने के साथ अयोध्या के शिखरगामी पर्यटन की व्यापकता का परिचायक प्रतीत होता है।लता मंगेशकर चौक से लखनऊ-गोरखपुर हाईवे तक पहुंचने के लिए चार सौ मीटर लंबे धर्मपथ से गुजरना होता है।
धर्मपथ के दोनों ओर लगे सूर्य स्तंभ और मुहाने पर स्थापित भव्य सूर्य द्वार अयोध्या के पुराकालीन यशस्वी नरेशाें का स्मरण कराता है।चित्रों और प्रतिमाओं के जरिए अभिव्यक्त श्रीराम की गाथा के साथ प्रवाहित 12 किलोमीटर की यात्रा का बोध तब और गहन होता है, जब बाईं ओर महर्षि वाल्मीकि अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट से सामना होता है।उड़ते और उतरते विमानों के साथ सहज ही परिभाषित होता है कि यह राम मंदिर के साथ अयोध्या की स्वर्णिम संभावनाओं का सर्वाधिक प्रामाणिक साक्षी है।
रानी हो के स्मारक के साथ अंतरराष्ट्रीय पर्यटन का मार्ग प्रशस्त हो रहा है।रानी हो की स्मृति में 50 करोड़ रुपये की लागत से भारत और कोरियन शैली से समंवित स्मारक विकसित किया गया है।दो हजार साल पूर्व कोरिया की रानी हो अयोध्या की राजकुमारी थीं।दैवी प्रेरणा से रानी हो सुदीर्घ जल मार्ग से दक्षिण कोरिया पहुंचीं। दक्षिण कोरिया में रानी हो का विवाह राजा सूरो से हुआ।आज दक्षिण कोरिया में सबसे अधिक स्थापित गोत्र वालों में रानी हो और राजा सूरो के वंशज हैं। नए शोध से पुराने रिश्तों पर से पर्दा हटने के बाद ढाई दशक पूर्व से पुरातन संबंधों में नई जान आ गई है।
अयोध्या में रेल यातायात व्यवस्था बड़े परिवर्तन की ओर है। अयोध्या जंक्शन आधुनिकतम सुविधाओं से युक्त होता जा रहा है।वंदे भारत एक्सप्रेस के साथ सेमी हाईस्पीड ट्रेन का युग भी आरंभ हो गया है।गोरखपुर से अयोध्या होते हुए लखनऊ के बीच चलने वाली इस ट्रेन के संचालन के बाद गुरु गोरखनाथ की तपोस्थली से भगवान राम की जन्मस्थली की यात्रा जहां पहले से कहीं अधिक सुगम हो गई है, वहीं लखनऊ पहुंचना भी आसान हो गया है।