नसीरुद्दीन साहब मैं बहुसंख्यक हिन्दू हूँ. तो क्या किसी मुस्लिम पर हुए अत्याचार पर मुझे नहीं बोलना चाहिए?

अनुपम खेर पर नसीरुद्दीन शाह के बयान पर पूर्वांचलसूर्य की राय

28 May 2016 |  739

फ़िल्मी कलाकारों और खिलाड़ियों के बीच वर्तमान भाजपा सरकार और उनके समर्थक हस्तिओं के पक्ष और विपक्ष में बयान देने का दौर जारी है. इसी क्रम में नरेंद्र मोदी सरकार के दो साल पूरे होने के साथ मशहूर अभिनेता नसीरुद्दीन शाह ने कश्मीरी पंडितों के मुद्दे पर अनुपम खेर पर निशाना साधा और कहा, ‘वह शख्स जो कभी कश्मीर में नहीं रहा, वह कश्मीरी पंडितों के विस्थापन की बात कर रहा है। अचानक से वह एक विस्थापित व्यक्ति बन गए और पंडितों के लिए लड़ाई शुरू की।’ शाह ने दुरी चिंता सरकार द्वारा पाठ्यपुस्तकों में बदलाव को लेकर दिया.उन्होंने कहा कि वह ‘कुछ पाठ्यक्रमों में किए गए बदलावों’ को लेकर चिंतित हैं। उन्होंने आगे कहा कि कुछ चीजें हैं जो मुझे चिंतित करती हैं जैसे पाठ्य पुस्तकों में बदलाव जो कि चिंता का विषय है।’ 66 साल के अभिनेता रिलीज हुई अपनी फिल्म ‘वेटिंग’ के प्रचार के लिए राष्ट्रीय राजधानी में थे। अनुपम खेर ने नसीरुद्दीन के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, 'मुझे नही लगता कि उन्होंने ऐसा स्टेटमेंट दिया होगा। पर अगर दिया है तो मुझे बहुत दुख है। यह बहुत इंसेंसिटिव स्टेटमेंट है और बहुत ही बेवकुफाना अजीबोगरीब बयान हैं। मुझे लगता है कि या तो उनसे ये दिलवाया गया है और अगर उन्होंने खुद दिया है तो बहुत ही शर्मनाक है और अफसोसजनक बात है।' अनुपम खेर ने आगे सवाल उठाते हुए कहा कि क्या एक NRI को देश के बारे में सोचने का हक नहीं है। उन्होंने कहा कि मेरे वहां रहने से क्या मेरे घरवाले जो वहां रहते हैं उनके बारे में बात नहीं कर सकता। क्या मुंबई दिल्ली और अलीगढ़ में रहकर गुजरात के मुसलमानों के बारे में बात नहीं की गई है। पूर्वांचलसूर्य खेर साहब की बात से सहमत है.ऐसा लगता है कि नसीर साहब राजनितिक अस्मिता (identity politics) के बहस में पड़ गए हैं.अगर ऐसा है तो यह खतरनाक है. इस देश में विभिन्न अस्मिताओं के नाम पर न जाने कितने संस्थान, वर्ग और समाज बने हैं. इस देश के राजनेताओं ने वोट बैंक के आधार पर भी हमें कई टुकडों में बांटा है. कुछ एक घटनाओं को छोड़ दें तो हम साथ-साथ ही रहतें हैं.अलग-अलग पहचान और अलग-अलग मांगों के वावजूद हम वहुधा एक दुसरे के साथ सौहार्द से रहतें है. अगर नसीर साहब के हिसाब से सोंचें तो कोई स्वर्ण दलितों के हित के बारे में नहीं सोंच सकता, कोई हिन्दू मुसलमान के हित में नहीं सोंच सकता, कोई उत्तर भारतीय दक्षिण भारतियों के बारे में नहीं बोल सकता. फिर ये देश एक कैसे होगा नसीर साहब? अनेकता में एकता का नारा यूँ ही लगातें हैं आप? दूसरा मुद्दा पाठयक्रमों में बदलाव को लेकर है. पिछले 60 सालों में वामपरस्त बुद्धिजीवियों ने कांग्रेसियों के आशीर्वाद से देश के इतिहास को जिस तरह पेश किया है क्या किसी से छुपा है? उनके हिसाब से भगत सिंह आतंकवादी थे और बाबर और औरंगजेब सरीखा शासक देशप्रेमी. अगर इसमें बदलाव न होता तो नसीर साहब को बड़ी ख़ुशी होती. अन्यथा उन्हें बड़ा दुःख हो रहा है. तो क्या नसीर साहब के इस दुःख में सभी भारतियों को छाती पीटना चाहिये? वास्तव में मुद्दा विहीन विपक्ष से जुड़े लोगों में विपक्ष की ही भांति इस कदर हताशा और निराशा व्याप्त है कि इस तरह के अनर्गल बयान देकर चर्चा में बने रहना फैशन सा बनता जा रहा है. और वैसे भी नसीर साहब की आने वाली फिल्म “वेटिंग” वेटिंगलिस्ट में है.......

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