चुनाव पूर्व यह मायावती का सतालोलुप और दमनात्मक चेहरा है

‘महिला विरोधी बीजेपी मुर्दाबाद’ कहने के कुछ ही सेकेंड बाद दयाशंकर की बहन-बेटी को पेश करने के नारे लगा रहे थे..

23 Jul 2016 |  1401

योगेन्द्र शर्मा . यूपी में बीजेपी के एक छोटे कद के नेता दयाशंकर सिंह ने मायावती को ‘वेश्या से बदतर’ कह दिया. यह बयान एक महिला के खिलाफ था. अतिनिंदनीय बयान. पूरे देश में इसके खिलाफ एक सहज गुस्सा दिखा. हमारी पार्टी ने निंदा भी की. वित मंत्री श्री अरुण जेटली ने संसद में खेद प्रकट किया. पार्टी ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया. कानून भी उनके खिलाफ कारवाई को तैयार है. लेकिन बसपा कार्यकर्ता जब लखनऊ की सड़कों पर उतरे तो उनका गुस्सा अलग था. वो इसे दलितों का अपमान कह रहे थे. वो दयाशंकर को उसी की जुबान में जवाब दे रहे थे. उनके हाथों में पोस्टर था, जिन पर लिखा था ‘दयाशंकर कुत्ते को बाहर करो, बाहर करो.’ वे यहीं नहीं थमे. उन्होंने नारे लगाए, ‘दयाशंकर अपनी बहन को पेश करो. दयाशंकर अपनी बेटी को पेश करो.’ ‘महिला विरोधी बीजेपी मुर्दाबाद’ कहने के कुछ ही सेकेंड बाद बीएसपी कार्यकर्ता दयाशंकर की बहन-बेटी को पेश करने के नारे लगा रहे थे. इन बसपा कार्यकर्ताओं के पक्ष में कैसे खड़ा हुआ जा सकता है? पर ज्यादा आश्चर्य मायावती के रिएक्शन पर आया है जो खुद को देवी बता रही थी. उन्होंने कहा कि जब दयाशंकर की पत्नी, मां और बेटी का अपमान किया गया, तभी वे औरतों की अपमान का मतलब समझेंगे? वाह रे देवी! वैसे भी मायावती और बाबासाहब को मानने वाले जे.एन.यू. में महिषासुर दिवस मनाते हैं और इस क्रम में देवी दुर्गा को वेश्या के रूप में प्रस्तूत करते हैं तब भी बहन जी को कोई कष्ट नहीं होता. मतलब स्पष्ट है कि बसपाईयों को देवी और महिला से ज्यादा लेना देना नहीं है, हाँ उन्हें दलित अस्मिता से जरूर प्यार है जिसके नाम पर वो सता का स्वाद चखते रहे है. और चूँकि प्रदेश में चुनाव की बयार बहने लगी है तो इस मौके को दलित अस्मिता से जोड़कर हंगामा बरपाना तो बनता ही था. आश्चर्य तो समस्त विपक्ष पर भी होता है जो बहनजी के सुर में सुर मिलाके कदम दाल कर रहा है. यही विपक्ष स्मृति ईरानी और प्रधानमंत्री मोदी जी को अपने पार्टी के कद्दावर नेताओं द्वारा कहे गए अपशब्द पर ‘कान बहिर और पीठ गहिर’ कर लेता है. वास्तव में हिंदुस्तान की राजनीति इस कदर मर्दवादी है कि वो औरत के अपमान का बदला भी औरत के अपमान से लेती है. खून के बदले खून मांगती है. गाली के बदले गाली देती है. कीचड़ को कीचड़ से धोती है. इस समस्त प्रकरण में सबसे मार्मिक स्थिति दयाशंकर के निर्दोष बहन,बेटी और पत्नी की रही है जिनके प्रति मैं घोर संवेदना व्यक्त करता हूँ. दयाशंकर की पाप की सजा उसके परिवार की महिला सदस्यों को किसी भी स्तर पर नहीं दी जा सकती. हालांकि बहनजी और बीएसपी के नंबर दो नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी तथा उनके गुर्गों को सबसे चोट करने वाला जवाब दयाशंकर की सातवीं क्लास में पढ़ने वाली बिटिया ने दिया है जिसे सुनकर कोई भी पानी-पानी हो जाये. 12 साल की इस बच्ची ने कहा, ”नसीम अंकल. मुझे बताएं कहां आना है. आपके पास पेश होने के लिए.” बसपा कार्यकर्ताओं की बेशर्मी से शायद उनके कार्यकर्ता खुश होंगे पर अब देश सदमे में है. मायावती और उनके कार्यकर्ताओं द्वारा गाली काण्ड के बाद जिस तरह का सम्वेदनहीन और तानाशाही रवैया सामने आया है उससे विशेषकर उत्तरप्रदेश की जनता को यह विचार आने लगा है कि वास्तव में सपा और बसपा में एक नागनाथ हैं तो दूसरा सांपनाथ. मायावती और उनके नेताओं ने जिस तरह विवेक हीनता का परिचय देते हुए दयाशंकर की माँ,पत्नी और 12 साल की बेटी के लिए अभद्र टिप्पणिया की हैं प्रदेश की महिलाओं में खासकर मायावती के इस दोगले रवैये से काफी रोष है . देश में बुद्धिजीवियों का भी मानना है कि जब उनको गाली का जवाब गाली से देना था तो फिर इतना हंगामा क्यों किया . बहरहाल अब दयाशंकर की माँ ने बसपा नेताओं रामअचलराज,नसीमुद्दीन सिद्दीकी आदि के खिलाफ एफआईआर दर्ज करा दी है और अब मायावती अगर अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं के उपर कोई कार्यवाई नही करती हैं तो इस हंगामें और दलित की बेटी के अपमान के नाम पर नौटंकी कर होहल्ला मचाने का दाँव उल्टा पडना तय है. (लेखक बिहार बीजेपी के आर्थिक और राजनीतिक प्रकोष्ठ से जुड़े हैं और लेख में व्यक्त विचार उनकी निजी अभिव्यक्ति है)

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