क्या इस्तांबुल की आतंकी घटना के बाद भी तुर्की पाकिस्तान का साथ देगा?
इस्लाम के स्वघोषित ठेकेदार खुद पवित्र रमजान को नहीं मानते, आतंक के नाम पर दोहरा चरित्र वाले देशों को एक और सबक
29 Jun 2016 | 743
रमजान के पाक महीने में भी कश्मीर में सेना और पुलिस पर कायरों की तरह छुप कर हमला करने वाले आतंकवादी अल्लाह के नाम पर ऐसा करते हैं क्यूंकि हिंदुस्तान की सेना और कश्मीरी पुलिस उनकी दुश्मन है. पर सीरिया, इराक, अफगानिस्तान आदि में मुसलमानों को ही निर्दयता से ये आतंकी मारते हैं तब इन्हें समझना मुश्किल नहीं होता. कल एक और मुस्लिम बहुल देश तुर्की के इस्तांबुल में दनादन गोलियां चलाकर और फिर फिदायन बनकर पचास के करीब लोगों की हत्या ने इनके मंसूबों को और स्पष्ट कर दिया है.
तुर्की के राष्ट्रपति तायिप ने हमले की निंदा की और सभी देशों से आतंक के खिलाफ खड़े होने की अपील की. ये घटना वाकई निंदनीय है. तुर्की ISIS के खिलाफ खड़ा रहा है अतः उसपर ऐसे हमले की उम्मीद की जा रही थी. परन्तु तुर्की को ये भी नहीं भूलना चाहिए की ऐसे आतंकिओं से सीधे लड़ने के साथ उन देशों के साथ भी सहयोग करना उतना ही जरूरी हैं जो ऐसे आतंकवादी हमलों से लगातार प्रभावित रहें हैं. न की धर्म के नाम पर उन देशों का साथ दें जो ऐसे आतंकियों का पनाहगार बना हुआ है. NSG के मुद्दे पर पाकिस्तान जैसे आतंकवाद के पनाहगार देश के साथ खड़ा होना आतंकिओं से उसकी लड़ाई को कमजोर ही करेगा.