महाकुंभ नगर।संगम की रेती पर 13 जनवरी से महाकुंभ होने जा रहा है।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी दौरा कर महाकुंभ की तैयारियों का जायजा ले चुके है। 144 साल बाद ऐसा शुभ अवसर आया है जब एक साथ छह शाही स्नान एक साथ होने वाले हैं। महाकुंभ का इतिहास पुराना है।इसका महत्व भी उतना ही पौराणिक है, जिसका सीधा संबंध देवताओं से है।
महाकुंभ का इतिहास मुगलों से लेकर अंग्रेजों से भी जुड़ा है। समय-समय पर ऐसी कई कहानियां है,जिसे पढ़कर आप भी चौक जाएंगे।ऐसी ही कहानी महाकुंभ उसके इतिहास और कुंभ में होने वाले खर्च से जुड़ी है।आइए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं।
एक समय था जब अंग्रेजी हुकूमत थी। साल 1942 का कुंभ उस समय के तत्कालीन वायसराय और भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड लिनलिथगो,महामना पंडित मदन मोहन मालवीय के साथ प्रयागराज शहर आए हुए थे।इस दौरान वायसराय कुंभ क्षेत्र में देश के अलग-अलग हिस्सों से आए लाखों श्रद्धालुओं को अलग-अलग वेशभूषा अपने अलग परिधान में संगम में स्नान करते और धार्मिक गतिविधियों में लीन देखकर आश्चर्यचकित हो गए थे।
वायसराय ने बड़े आश्चर्य से मालवीय से पूछा इतने बड़े भव्य आयोजन के प्रचार प्रसार में बड़ा खर्च हुआ होगा तो मालवीय ने जवाब दिया कि सिर्फ दो पैसा। बता दें कि 142 साल पहले साल 1882 में महाकुंभ के आयोजन में महज 20.2 हजार रुपये खर्च हुए थे।
अगर 2025 के इस महाकुंभ की बात की जाए तो 7500 करोड़ रुपए है।यह अब तक का सबसे बड़े महाकुंभ को लेकर तैयारी का यह आंकड़ा सामने आया है।जहां लगभग 45 करोड़ श्रद्धालु इस बार संगम में स्नान करने के लिए पहुंचेंगे।साल 1882 में मौनी अमावस्या पर 8 लाख श्रद्धालुओं ने संगम में स्नान किया था। उस समय भारत की आबादी 22.5 करोड़ थी। 20,288 रुपये खर्च हुए थे।अगर आज के खर्च से तुलना की जाए तो लगभग 3.65 करोड़ रुपए होता है।साल 1906 के कुंभ में लगभग 25 लाख लोग शामिल हुए थे और उस पर 90,000 रुपये (इस वक्त के खर्च के हिसाब से 13.5 करोड़ रुपये होता है ) उस समय देश की आबादी 24 करोड़ थी। वहीं 1918 के महाकुंभ में लगभग 30 लाख लोगों ने संगम में डुबकी लगाई थी, जबकि उस समय की आबादी 25.20 करोड़ थी। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 1.37 लाख रुपये आज के समय के हिसाब से 16.44 करोड़ रुपए खर्च होता है।
बता दें कि भारत के पहले राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने साल 1954 में कुंभ मेले में कल्पवास किया था। उनके लिए अकबर के किले में कल्पवास का आयोजन किया गया था। ये जगह प्रेसिडेंट व्यू के नाम से जानी जाती है।